Wednesday, December 24, 2008

अंधेरा

रात मे टिमटिमाती रौशनी,
सागर के लहरों की पुकार,
अंधेरा खिंच रहा अपनी ओर,
जैसे करता हो मेरा इंतजार

कभी ये काली रौशनी लगती है नयी रात,
ना पहले उजाला था ना बाद मे कभी होगा,
ये अंधेरा अपनासा लगता है, बिछडे यारों जैसा

सच्चाई छिप जाती है,
धुंधलीसी आती है नजर,
शायद इसी वजह से हमें अंधेरा पसंद है
उजाले से बेहतर..

आंखें मुंद के देख पाते हो सपने,
जो लगते है बहोत अपने,
तो शायद आंखें खोल जी ना पायेंगे,
हम ऐसे ही गुजर जायेंगे

--स्नेहा

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