स्वप्नांची दुनिया
Wednesday, December 24, 2008
क्या डरना
पतझड़ मे गिरे पत्तों को ठिकाने से क्या डरना,
जंगल मे खिले फूल को काटोंसे क्या डरना,
यूँ तो हज़ार जख्म झेले है जिगर पे,
तो इस जमाने के सताने से क्या डरना
--स्नेहा
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