स्वप्नांची दुनिया
Wednesday, September 5, 2007
ज़िंदगी
यही तो मज़ा है ,ज़िंदगी खेल खेलती है
ढूँढा जहाँ में , आख़िर पैरों तलेही मिलती है
...स्नेहा
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