Saturday, January 31, 2009

रात

थंड की चादर लपेटे ना जाने यह रात कहां जा रही थी...
देख मुझे रास्तेमे, मुड गयी मेरी तरफ़..
रात के चेहरे पे, खिली थी मुस्कान...
माथे पे चांद की बिंदी सजाये, मुस्काये जा रही थी...
हवामे लहराते, काले घने बालोंमे तारे सजाये हुए थे....

कितने अपनेपनसे बातें कर रही थी ...
पुछा उसने...
कैसे जी लेते हो अपने थंडे दिल के साथ?
मै चौंक गयी.... थोडी हिम्मत जुटाके कहा
ना पिघलाओ इस दिल को.....
वापस उमड उठेंगे अधूरे अरमान..
कुछ बिखरे सपनें और कुछ दबी हुइ आहें...
शायद तुम समझ नहीं पाओगी इस दर्द को....

एक शिकनसी दिखी उसके चेहरे पे

ऐसे बातें करते करते...सुबह की आहट सुनाई दी..
और रात को अलविदा कहने का वक्त आ गया..

वोह तो चली गयी ... छोड गयी एक बात दिल मे...
कैसे जी पाती है वोह इस अकेलेपन के साथ?

काल फिर वापस उसकी राह देखने उसी रास्ते मैं चल पडी...
ना मिली वोह..ना ही उसकी आहट....
मैं निराश मन से वापस लौट आयी..

आज ना जाने क्युं ऐसा लग रहा है...
कहीं कोइ काली रात मेरे भीतर तो नहीं?

--sneha

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