क्यूँ लग रहा है आज मेरा फ़ैसला गलत,
क्यूँ हो गयी है नाजूक मेरे मन की ये हालत,
हमें भुल जाना, जब हमने कहा था,
थामा था हाथ तुमने फ़िर इजहार किया था,
मेह्सुस ना कर पाये थे हाथों की गर्मी को,
आज ढुंढ रहे है उन्ही हाथों की नर्मी को
तुमने दिये थे सपने हजार रंगोंसे बुने,
आसमानसे लाया था तारोंको सजाने,
मुझे लगा था के ये मेरा सपना ही नहीं है,
सच ये है के तेरे बगैरे कोइ अपना ही नहीं है
साथ तुम्हारे जाना मैने खुदको नजदिक से,
तुमने हमेशा समझा है मुझको तहे दिलसे,
मै ही ना समझ पायी तेरे इस प्रयास को,
खुदगर्ज की तरह तोडा तेरे दिलकॊ
क्या मांगा था तुमने? बस प्यार की एक नजर,
जब हो कोइ दुख का साया तो अपनेपन एक नजर,
पर मेरी आंखोंपे एक पर्दासा चढा था,
तेरी हर मांग को हमेशा गलतही पढा था
क्यूँ लग रहा है आज मेरा फ़ैसला गलत,
क्यूँ हो गयी है नाजूक मेरे मन की ये हालत,
--स्नेहा
No comments:
Post a Comment